शिक्षक और परिवर्तन की मिशाल शिक्षक को परिवर्तन के लिए जाना जाता है। समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा सुधारों के प्रतीक हैं, शिक्षक | अब उन शिक्षकों को एक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी है , जिनकी सेवा 6 अथवा 8 वर्ष है , हां उन्हें पास करना भी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। परन्तु क्या ऐसी परीक्षा जिसमें पिता और पुत्र एक साथ बैठ कर परीक्षा दें | उसके लिए अतिरिक्त समय , तैयारी और पुनः समायोजित तैयारी की जरुरत होगी | सरकारी शिक्षकों का दायित्व एक सरकारी शिक्षक को , बाल गणना , जनगणना , मकान गणना , बाढ़ नियंत्रण, बी एलओ, सफाई , एमडीएमए ,चुनाव और भी बहुत कुछ तब जा कर मूल दायित्व बच्चों को गढ़ कर नागरिक बनाना | मुर्गे की कहानी और शिक्षक जो समस्याएं आती हैं उनकी पटकथा और पृष्ठभूमि होती है। अनायास एक दिन में समस्याएं नहीं आ जाती. .. एक लोक कथा याद आ गई. . एक शानदार मुर्गा था कलंगीदार मस्तक , चमकीले पंख , चमकदार आंखे , मांसल पैर और वजनदार शरीर अर्...
महाड सत्याग्रह के लगभग सौ साल और दलित विमर्श
दलित उसे कहा गया जो दबाया गया हो, जिसे आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षिक अधिकारों से जिन्हें वंचित किया गया हो वो हैं दलित |
महाड सत्याग्रह को अभी सौ साल भी नहीं हुए और दलित दिगभ्रमित हो गया | भूल गया अपने पर हुए अत्याचार को , जब रास्ते तालाब और पनघट उसके लिए नहीं थे | एकाधिकार था उसपर अभिजात्य वर्ग का |
अछूतों से रास्ते दूषित हो जाया करते थे | जलाशयों से हिन्दू- मुस्लिम, सिक्ख व कुत्ते और जानवर तो पानी पी सकते थे परन्तु दलित ( कथित अछूत जो हिन्दू में ही गिने जाते थे ) पानी नहीं पी सकते थे | प्रकृति प्रदत्त इन संसाधनों पर अभिजात्य वर्ग का अधिकार था |गलती से अगर कोई कथित अछूत इन जलस्रोतों के जल का स्पर्श कर लिया तो गाय के मूत्र, गोबर व गंगाजल प्रवाहित कर जलाशय को पवित्र किया जाता था |
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने महाराष्ट्र के रायगढ़ में चावदार तालाब से 20 मार्च 1927 को अपनी अंजुरी में जलभर कर पीया और वहीं पर अर्धनग्न, नग्न, दबे -कुचले समाज को सम्बोधित किया तथा उनके अधिकार के प्रति जागरूक किया इस सत्याग्रह को महाड सत्याग्रह, चवदार मुक्ति सत्याग्रह और सामाजिक सशक्तिकरण दिवस का नाम दिया गया |
स्थिति आज भी कमोबेश बनी हुई है, शिक्षा, चिकित्सा और सम्बोधन के दोहरे मापदंड अछूत बनाए रखते एक बड़े वर्ग को और इन संसाधनों पर आज भी एक विशेष वर्ग काबिज है |
बाबा साहेब ने एक शम्मा जलाई वह खूब प्रकाश की परन्तु उनके सपने को बेच रहे हैं लोग... आने वाली पीढ़ी को दलित और अछूत बनाने के तरफ बढ़ रहे हैं लोग... आप भी सोचिए की आप किस प्रकार सम्मिलित हैं इस दुराग्रह में.....
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